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अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पर पहुंचने वाले पहले भारतीय शुभांशु शुक्ला ने कहा है कि जब कोई अंतरिक्ष में जाने के लिए धरती छोड़ता है, तोपृथ्वी उसकी पहचान बन जाती है। उन्होंने यह भी कहा कि अंतरिक्ष में अब राष्ट्रीयता का नहीं, बल्कि मानवता का सवाल है। शुभांशु शुक्ला ने यहबात छात्रों को वर्चुअली संबोधित करते हुए कही। दरअसल, शुभांशु शुक्ला भारतीय विद्यालय प्रमाणपत्र परीक्षा परिषद से संबद्ध स्कूलों के छात्रों सेवर्चुअली संवाद कर रहे थे। गोवा में मौजूद शुभांशु शुक्ला ने कहा कि अंतरिक्ष में राष्ट्रीयता मायने नहीं रखती, क्योंकि मानवता सर्वोपरि है। अंतरिक्षस्टेशन में अपने अनुभवों को साझा करते हुए उन्होंने कहा कि स्टेशन से बाहर देखने पर ऐसा लगा जैसे किसी ऐसे दफ्तर में हों, जहां से सबसे अच्छादृश्य दिखाई दे रहा हो।

देश के ऊपर से उड़ान भरने का दृश्य
शुभांशु शुक्ला ने “प्रज्वलित मन, सीमाओं की खोज करना: अंतरिक्ष, शिक्षा और उद्योग का अभिसरण” शीर्षक वाले सत्र में हिस्सा लिया, जहां स्पेसस्टेशन को लेकर बताया कि यह बहुत ही आकर्षक था। संवाद सत्र के दौरान उन्होंने कहा कि इस दुनिया में लोगों की अलग-अलग पहचान हो सकतीहै, लेकिन जब कोई अंतरिक्ष में होता है तो वे धुंधली हो जाती हैं। उन्होंने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि, “जब आप बच्चे होते हैं और स्कूलजाते हैं, तो हमारा घर और माता-पिता हमारी पहचान बन जाते हैं। जब हम कॉलेज जाते हैं, तो कॉलेज हमारी पहचान बन जाता है। जब आप शहरछोड़कर दूसरी जगह जाते हैं, तो वह शहर आपकी पहचान बन जाता है। जब आप विदेश जाते हैं, तो आपका देश आपकी पहचान बन जाताहै।”उन्होंने कहा कि “अंतरिक्ष में दो-तीन दिन बिताने के बाद, एक दिन वह अपने काम में व्यस्त थे, तभी नासा के एक अंतरिक्ष यात्री ने उन्हें बताया किवे भारत के ऊपर से उड़ान भरेंगे। उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या मैं इसे देखना चाहूंगा। मैंने कहा “जरूर” फिर उन्होंने कैमरे सेट किए। रात में पूरे देश केऊपर से उड़ान भरने का दृश्य असाधारण रूप से सुंदर था, और इससे जो भावनाएं पैदा हुईं, वे बेहद भावुक थीं।”
हम वास्तव में कितने छोटे और महत्वहीन
उन्होंने आगे कहा कि, “जब मैं अमेरिका में (अंतरिक्ष मिशन के लिए) ट्रेनिंग ले रहा था, तो मेरा देश मेरी पहचान था। जब आप इस ग्रह को छोड़ते हैं, तो आपका ग्रह आपकी पहचान बन जाता है। यह एक ऐसा गहरा एहसास होता है कि पूरी पृथ्वी ही आपका घर बन जाती है।” शुभांशु शुक्ला ने कहाकि आप किसी खास महाद्वीप, किसी खास देश, किसी खास क्षेत्र या जहां आप रहते हैं, उस पर ध्यान केंद्रित नहीं करते। आप बस पृथ्वी को देखते हैंऔर कहते हैं मैं यहीं रहता हूं। उन्होंने साफ किया कि अंतरिक्ष में राष्ट्रीयता मायने नहीं रखती, क्योंकि मानवता सर्वोपरि है।उन्होंने 1984 में भारत केपहले अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा द्वारा तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से कही गई प्रसिद्ध पंक्ति “सारे जहां से अच्छा” को याद किया। और कहा किअब मैं उनकी भावना और उन्हें यह कहने के लिए प्रेरित करने वाली बात को पूरी तरह समझता हूं। शुक्ला ने छात्रों को बताया कि जब कोई ऊपर सेपृथ्वी को देखता है, तो उसका नजरिया बदल जाता है।उन्होंने कहा, “जब आप पृथ्वी पर होते हैं, तो आप बहुत महत्वपूर्ण व्यक्ति बन सकते हैं, बड़ेपद संभाल सकते हैं, लेकिन जब आप अंतरिक्ष से हमारे ग्रह को देखते हैं, तो आपको एहसास होता है कि हम वास्तव में कितने छोटे और महत्वहीनहैं।” शुक्ला ने कहा कि जब उन्होंने पहली बार ऊपर से भारत को देखा, तो वह उनके लिए बहुत भावुक क्षण था।

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