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केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने ट्वीट कर उनके द्वारा पेश किए जेल जाने वाले नेता को प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या केन्द्र और राज्य सरकारमें मंत्री जैसे अहम पदों से हटाने वाले बिल का विरोध करने पर कांग्रेस सहित पूरे विपक्ष के दोहरे चरित्र का पर्दाफाश किया. उन्होंने बताया कि इंदिरागांधी ने अपने आप को कानून के दायरे में आने से बचाने के लिए संविधान में संशोधन लाया था और कांग्रेस उसी संस्कृति को आगे बढ़ाना चाहती है. जहां कांग्रेस की कार्यसंस्कृति और नीति प्रधानमंत्री को कानून से ऊपर रखने की रही है, वहीं भाजपा की नीति अपने प्रधानमंत्री, मंत्रियों औरमुख्यमंत्रियों को कानून के दायरे में लाने की है. शाह ने कहा कि मोदी सरकार की राजनीति में नैतिक मानकों को बहाल करने की प्रतिबद्धता और जनतामें इस समस्या को लेकर गुस्से को देखते हुए, आज मैंने लोकसभा अध्यक्ष की अनुमति से ऐसे संवैधानिक संशोधन विधेयक पेश किए हैं जिनसे यहसुनिश्चित होगा कि कोई भी व्यक्ति जेल में रहते हुए प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या केंद्र और राज्य सरकार में मंत्री जैसे अहम संवैधानिक पदों पर कार्य नहींकर सकेगा.

मानकों को सुधारना और राजनीति में शुचिता बनाए है रखना
विधेयकों का उद्देश्य गिरते नैतिक मानकों को सुधारना और राजनीति में शुचिता बनाए रखना है. इन तीनों बिल से जो कानून अस्तित्व में आएगा, वहयह है कि कोई भी व्यक्ति अगर गिरफ्तार होकर जेल में है, तो वह प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या केंद्र/राज्य सरकार में मंत्री नहीं रह सकेगा. जब संविधानबना था, तब उसके निर्माताओं ने यह कल्पना भी नहीं की होगी कि भविष्य में कुछ नेता गिरफ्तारी के बाद भी नैतिक आधार पर इस्तीफा देने से इनकारकरेंगे. हाल के वर्षों में देश ने देखा है कि कैसे कुछ मुख्यमंत्री या मंत्री जेल से ही सरकार चलाते रहे हैं.

विधेयक में यह भी प्रावधान
विधेयक में यह भी प्रावधान है कि अगर कोई नेता गिरफ्तार होता है, तो उसे 30 दिनों के भीतर जमानत लेने का समय दिया जायेगा. यदि 30 दिन मेंजमानत नहीं मिली, तो 31वें दिन प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री को उसे पद से हटाना होगा, अन्यथा वह स्वतः ही अयोग्य हो जाएगा. हालांकि, अगर बाद मेंविधिक प्रक्रिया से जमानत मिल जाती है तो उसे फिर से पद पर बहाल किया जा सकता है. अब सवाल देश की जनता के सामने है कि क्या किसीमंत्री, मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री के लिए जेल से सरकार चलाना उचित है? केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री ने कहा कि एक तरफ माननीय प्रधानमंत्री श्रीनरेन्द्र मोदी जी ने खुद को कानून के दायरे में लाने के लिए संवैधानिक संशोधन प्रस्तुत किया है, वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस के नेतृत्व में पूरा विपक्ष इसकाविरोध कर रहा है ताकि वे कानून के दायरे में न आएं, जेल से सरकार चलाते रहें और सत्ता से चिपके रहें। राष्ट्र यह भी याद रखता है कि इसी सदन मेंतत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जी ने 39वें संवैधानिक संशोधन के जरिए प्रधानमंत्री को विशेषाधिकार दे दिया था, जिससे उन पर कोई कानूनीकार्यवाही न हो सके. जहां कांग्रेस की कार्यसंस्कृति और नीति प्रधानमंत्री को कानून से ऊपर रखने की रही है, वहीं भाजपा की नीति अपने प्रधानमंत्री, मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों को कानून के दायरे में लाने की है.

नैतिक मूल्यों के पक्षधर
केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री ने कहा कि भाजपा और एनडीए हमेशा नैतिक मूल्यों के पक्षधर रहे हैं. भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी जीने तो केवल आरोप लगने पर ही अपने पद से इस्तीफा दे दिया था. दूसरी ओर कांग्रेस आज भी इंदिरा गांधी द्वारा शुरू की गई अनैतिक परंपरा को आगेबढ़ा रही है. लालू प्रसाद यादव को कानून से बचाने के लिए कांग्रेस पार्टी द्वारा लाए गए अध्यादेश का विरोध स्वयं राहुल गांधी ने किया था और आजवही राहुल गांधी लालू यादव को पटना के गांधी मैदान में गले लगा रहे हैं. जनता उनके दोहरे व्यवहार को भलीभांति समझती है। यह पहले ही स्पष्टकर दिया गया था कि इस विधेयक को विस्तृत चर्चा के लिए संसद की संयुक्त संसदीय समिति को भेजा जाएगा. इसके बावजूद कांग्रेस के नेतृत्व मेंपूरा इंडिया गठबंधन बेशर्मी से एकजुट होकर भ्रष्टाचारियों को ढाल देने के लिए इसका विरोध कर रहा है. आज विपक्ष देश की जनता के सामने पूरीतरह बेनकाब हो चुका है.

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