
14 अक्टूबर का दिन भारतीय इतिहास में अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसी दिन बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर ने बौद्ध धर्म अपनाया था। इसे हम ‘धर्मचक्र प्रवर्तन’ के रूप में याद करते हैं। यह दिन केवल इतिहास का हिस्सा नहीं है, बल्कि दलित समाज के लिए उनके अधिकारों और समानता कीलड़ाई का प्रतीक भी है। आज के समय में बाबा साहेब की याद करना इसलिए और भी जरूरी हो गया है, क्योंकि देश में दलितों के खिलाफ भेदभावऔर अत्याचार लगातार बढ़ रहे हैं। संवैधानिक संस्थाओं और सरकार की जिम्मेदारी है कि वह दलितों के अधिकारों की रक्षा करें, लेकिन अक्सर यहजिम्मेदारी निष्क्रिय नजर आती है।
दलितों के अधिकारों पर बढ़ते खतरे
आज देश में मनुस्मृति से प्रेरित विचारधारा सत्ता पर काबिज है। यह विचारधारा लगातार दलितों के अधिकारों पर चोट कर रही है। सरकारी नीतियोंऔर प्रशासनिक उदासीनता के कारण दलित समाज संकट में है। हर दलित नागरिक को अपने सम्मान और अस्तित्व की रक्षा के लिए लगातार संघर्षकरना पड़ता है। यह स्थिति हमें सोचने पर मजबूर करती है कि आखिर कब तक दलित समाज को न्याय और समानता के अधिकारों के लिए लड़नाहोगा।
अक्टूबर महीने में हुई दर्दनाक घटनाएं
अक्टूबर की शुरुआत से ही देश में कई झकझोर देने वाली घटनाएं सामने आई हैं। 2 अक्टूबर को रायबरेली में हरिओम वाल्मिकी नामक व्यक्ति कोचोरी के झूठे आरोप में पीट-पीटकर मार डाला गया। 6 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पर जूता फेंकने की कोशिश की गई। 9 अक्टूबरको IPS अधिकारी वाई पूरन कुमार ने खुदकुशी कर ली। ये घटनाएं न केवल समाज को हिला देने वाली हैं, बल्कि यह सवाल भी उठाती हैं कि क्यासरकार दलितों और पीड़ितों के अधिकारों की सुरक्षा करने में सक्षम है।
देशभर में दलितों के खिलाफ बढ़ते अपराध
देश में दलितों के खिलाफ लगातार अपराध हो रहे हैं। हाल ही में हुई घटनाएं इस गंभीर स्थिति को उजागर करती हैं। यूपी के बंथरा में एक दलितयुवती के साथ गैंगरेप हुआ। बिहार के गोपालगंज में दलित युवती के साथ सामूहिक दुष्कर्म की घटना सामने आई। राजस्थान के सीकर में दलित युवकके साथ यौन उत्पीड़न हुआ। उत्तर प्रदेश के बरेली में दलित युवती का बेरहमी से सामूहिक दुष्कर्म किया गया। मध्य प्रदेश में सवर्ण ससुरालवालों नेदलित युवक की हत्या कर दी। गुजरात में दलित युवक को मंदिर जाने पर पीटा गया। जोधपुर में एक दलित युवक पर हमला हुआ, क्योंकि उसनेBJP नेता का स्वागत नहीं किया। इन घटनाओं को देखकर यह स्पष्ट होता है कि देश में दलित समाज को सुरक्षा और न्याय मिलने में गंभीर बाधाएंहैं।
सवाल जो हर नागरिक के मन में उठते हैं
इन घटनाओं के बाद कई सवाल उठते हैं। क्या महात्मा गांधी और बाबा साहेब के सपनों वाला भारत अब अपराधियों को संरक्षण दे रहा है? क्यासमानता केवल इतिहास की बात बन गई है? क्या नरेंद्र मोदी का ‘अमृतकाल’ वास्तव में दलितों के लिए ‘शापित काल’ बन गया है? आखिर क्योंप्रधानमंत्री और गृह मंत्री पीड़ित परिवार से मिलने नहीं गए? क्यों देश के मुख्य न्यायाधीश से बात करने में इतनी देर हुई?
बाबा साहेब की याद और हमारी जिम्मेदारी
14 अक्टूबर केवल इतिहास का हिस्सा नहीं है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि दलित समाज के अधिकारों की रक्षा और न्याय के लिए सतत प्रयासकरना कितना जरूरी है। बाबा साहेब अंबेडकर ने अपने जीवन में सामाजिक समानता और न्याय के लिए संघर्ष किया। आज हमें उनके आदर्शों को यादकरते हुए यह देखना चाहिए कि क्या हमारा देश उनके सपनों का भारत बना रहा है।