
दिल्ली नगर निगम के सदन की बैठक में आज उस समय हंगामेदार दृश्य देखने को मिला जब आम आदमी पार्टी के पार्षदों ने नगर निगम के 12 हज़ारअनुबंधित कर्मचारियों को स्थायी करने की माँग ज़ोर-शोर से उठाई। यह कर्मचारी वर्षों से नियमितीकरण की माँग कर रहे हैं, लेकिन हर बार उनकीआवाज़ को अनसुना किया जाता है।
बैठक में जब आम आदमी पार्टी के पार्षदों ने इस मुद्दे पर चर्चा की माँग की और इसे सदन में प्रमुखता से उठाया, तो मेयर राजा इक़बाल सिंह ने बिनाकोई ठोस उत्तर दिए बैठक को ही स्थगित कर दिया। यह निर्णय साफ़ दर्शाता है कि भाजपा को न तो मज़दूरों की चिंता है और न ही दलित समाज केसाथ कोई संवेदनशीलता।
12 हज़ार मज़दूरों में अधिकतर दलित
यह जानकारी सामने आई है कि जिन 12 हज़ार कर्मचारियों को स्थायी करने की माँग की जा रही है, उनमें बहुसंख्या दलित समुदाय से है। वर्षों सेसफाई कर्मचारी, दफ्तरी, माली, ड्राइवर जैसे पदों पर कार्यरत ये मज़दूर न्यूनतम वेतन, सामाजिक सुरक्षा और स्थायित्व से वंचित हैं। लेकिन भाजपाशासित निगम प्रशासन लगातार इनकी उपेक्षा करता आया है।
भाजपा का दलित विरोधी चेहरा फिर सामने – आम आदमी पार्टी ने आरोप लगाया कि भाजपा हमेशा से ही दलितों और मेहनतकश तबके के विरोध मेंकाम करती रही है। आज जब उनके स्थायीकरण की माँग सदन में उठाई गई तो भाजपा के मेयर ने न केवल चर्चा से बचने की कोशिश की, बल्किजनहित से जुड़ी बैठक को ही बीच में रोक दिया।
आप पार्षदों ने यह स्पष्ट किया कि यह लड़ाई अब रुकने वाली नहीं है। वे जब तक इन कर्मचारियों को उनका हक़ नहीं दिलवा देते, तब तक सदन औरसड़क – दोनों पर संघर्ष जारी रखेंगे।
जनता से किया धोखा – भाजपा ने चुनाव से पहले वादा किया था कि निगम के अनुबंधित कर्मचारियों को स्थायी किया जाएगा, लेकिन सत्ता में आतेही वे वादे भूल गए। आज जब दलित और मेहनतकश कर्मचारी उम्मीद लेकर सदन की ओर देख रहे थे, तब उन्हें सिर्फ़ निराशा और उपेक्षा मिली।
आज की घटना ने एक बार फिर साफ़ कर दिया कि भाजपा की प्राथमिकता में दलितों और मज़दूरों का स्थान नहीं है। आम आदमी पार्टी ने यह संकल्पलिया है कि वह सदन के भीतर और बाहर, दोनों जगह इन 12 हज़ार कर्मचारियों के हक़ की लड़ाई लड़ेगी और उन्हें न्याय दिलाकर रहेगी।