
देशभर में मेडिकल और फार्मेसी शिक्षा से जुड़ा एक बहुत ही गंभीर और चौंकाने वाला घोटाला सामने आया है। यह घोटाला सिर्फ एक राज्य याविभाग तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें कई राज्यों के मेडिकल और फार्मेसी कॉलेज, बड़े अधिकारी, बिचौलिए और नेताओं के करीबी लोग शामिलहैं। इस पूरे मामले में फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया (पीसीआई) और नेशनल मेडिकल कमीशन (एनएमसी) के वरिष्ठ अधिकारियों की भारीलापरवाही और भ्रष्टाचार उजागर हुआ है।
कैसे शुरू हुआ घोटाला? – 6 अप्रैल 2022 को फार्मेसी काउंसिल के अध्यक्ष डॉ. मोंटू पटेल ने अपने कुछ खास लोगों को नियमों को ताक पर रखकरएक अहम कमेटी में शामिल कर लिया। यह वही कमेटी थी, जो फार्मेसी कॉलेजों को मान्यता (अप्रूवल) देती है। उन्होंने इन लोगों को पूरी ताकत दीताकि वह बिना किसी रुकावट के कॉलेजों को अनुमोदन दे सकें। न तो किसी से कोई सलाह ली गई, और न ही किसी नियम का पालन किया गया।
निरीक्षण की प्रक्रिया में धोखा – आम तौर पर किसी भी कॉलेज को अनुमति देने से पहले फिजिकल वेरिफिकेशन (भौतिक निरीक्षण) किया जाता है।इसमें देखा जाता है कि कॉलेज के पास जरूरी भवन, क्लासरूम, लैब, शिक्षक और अन्य सुविधाएं हैं या नहीं। लेकिन इस घोटाले में यह प्रक्रिया पूरीतरह स्क्रैप कर दी गई और उसकी जगह केवल ऑनलाइन ज़ूम वीडियो कॉल पर 7 से 9 मिनट का निरीक्षण किया गया। बिना दस्तावेज़ देखे, बिनाइमारत का निरीक्षण किए, केवल एक वीडियो कॉल के ज़रिये कॉलेजों को मंजूरी दी गई। यह पूरी प्रक्रिया एक मज़ाक बनकर रह गई।
फर्ज़ी एप और आवेदन की हेराफेरी
एक गूगल फॉर्म के ज़रिये 908 कॉलेजों ने आवेदन भेजे।
इनमें से 870 को ऑनलाइन निरीक्षण के लिए चुन लिया गया।
जांच के लिए जो डीजी फार्मा मोबाइल एप इस्तेमाल होता था, उसे भी छेड़छाड़ (टैम्पर) कर दिया गया।
14 अक्टूबर 2022 को इस एप का एक्सेस बाकी अधिकारियों के लिए बंद कर दिया गया ताकि सारा नियंत्रण केवल डॉ. पटेल के पास रहे।
सीबीआई जांच और खुलासे – सीबीआई द्वारा दर्ज प्राथमिकी (एफआईआर) में बताया गया कि इस पूरे घोटाले में 23 कॉलेजों को मंजूरी दी गईजबकि वे जरूरी मानकों पर खरे नहीं उतरे।, 6 कॉलेजों को तो मंजूरी दी गई जबकि उनके पास नकारात्मक निरीक्षण रिपोर्ट थी।, चुनाव प्रक्रिया में भीअनियमितता हुई और नियमों की खुलेआम धज्जियाँ उड़ाई गईं।
डॉ. जीतू लाल मीणा की भूमिका -एनएमसी के तत्कालीन सदस्य डॉ. जीतू लाल मीणा को इस पूरे घोटाले का मुख्य सूत्रधार बताया जा रहा है। उन्होंनेकरोड़ों रुपये की रिश्वत ली और हवाला के ज़रिये पैसा इधर-उधर भेजा। यह पैसा डॉ. वीरेंद्र कुमार और शिवम पांडे जैसे बिचौलियों के माध्यम सेलिया गया। सूत्रों के अनुसार, डॉ. मीणा ने इस पैसे से राजस्थान में 75 लाख रुपये की लागत से हनुमान मंदिर का निर्माण भी शुरू किया है।
घोटाले में शामिल प्रमुख कॉलेज
इंडेक्स मेडिकल कॉलेज, इंदौर
स्वामीनारायण मेडिकल संस्थान, गुजरात
एनसीआर मेडिकल कॉलेज, मेरठ
श्यामलाल चंद्रशेखर मेडिकल कॉलेज, बिहार
रावतपुरा सरकार मेडिकल कॉलेज, रायपुर (जिसका संचालन एक स्वयंभू बाबा द्वारा किया जाता है)
बड़ा सवाल- क्या मंत्री जिम्मेदार नहीं? इस पूरे घोटाले में अभी तक केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री और बीजेपी अध्यक्ष जे. पी. नड्डा का नाम सामने नहीं आयाहै, जबकि यह घोटाला उनके मंत्रालय के अंतर्गत हुआ है। सवाल उठता है कि इतनी बड़ी अनियमितता और रिश्वतखोरी के बीच मंत्री कैसे अनजानरहे? क्या उन्होंने जानबूझकर इसे नज़रअंदाज़ किया?
विपक्ष का सीधा आरोप प्रधानमंत्री और नड्डा पर – विपक्ष की नेता ओनिका जी ने सवाल उठाया है
जब डॉ. पटेल और डॉ. मीणा जैसे लोग प्रधानमंत्री के करीबी माने जाते हैं, तो क्या प्रधानमंत्री को इस घोटाले की जानकारी नहीं थी?
क्या बीजेपी अध्यक्ष नड्डा को इसका कोई जिम्मा नहीं लेना चाहिए?
क्या प्रधानमंत्री अब खुद नड्डा से इस्तीफ़ा लेंगे?
क्या सीबीआई निष्पक्ष जांच करेगी और राजनीतिक नेताओं को भी नामज़द करेगी?
घोटाले का मकसद- छात्रों का भविष्य बेच देना – इस पूरे घोटाले का सबसे बड़ा नुकसान छात्रों को हुआ है। मेडिकल और फार्मेसी जैसे क्षेत्रों में फर्ज़ीकॉलेज, भ्रष्ट अधिकारी, और नियमों की अनदेखी ने लाखों छात्रों का भविष्य दांव पर लगा दिया है। यह घोटाला व्यापम से भी बड़ा माना जा रहा है, जिसमें सिर्फ मध्य प्रदेश नहीं बल्कि राजस्थान, हरियाणा, गुजरात, बिहार और कई राज्यों के कॉलेज शामिल हैं।
क्या होगी सज़ा? -अब देश की जनता और छात्र यह जानना चाहते हैं कि क्या इन घोटालों के जिम्मेदार लोगों को सज़ा मिलेगी?
क्या प्रधानमंत्री और उनके मंत्री सच्चे दोषियों पर कार्रवाई करेंगे?
या फिर यह भी एक और घोटाला बनकर भुला दिया जाएगा?