
देश में अनुसूचित जातियों, जनजातियों, पिछड़े वर्गों और अल्पसंख्यकों के खिलाफ हो रहे अत्याचारों पर राजेन्द्र पाल गौतम ने एक बार फिर ज़ोरदारआवाज़ उठाई है। उन्होंने कहा कि आज़ादी के 75 वर्ष बाद भी देश के दलितों को न तो सम्मान मिल पाया है, न ही न्याय। राजेन्द्र पाल गौतम ने कहाकि संविधान के अनुसार राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग का गठन हुआ था ताकि दलितों की शिकायतों पर गंभीरता से सुनवाई हो सके। लेकिनसच्चाई यह है कि आयोग में अब तक 6,02,177 शिकायतें दर्ज हुई हैं, जिनमें से केवल 5,843 मामलों में सुनवाई हुई है। अनुसूचित जनजातियों की1,783 शिकायतों पर ही कार्यवाही की गई है। जब सुनवाई ही नहीं होनी है, तो आयोग क्यों बना रखा है?
राजेन्द्र पाल गौतम की प्रमुख मांगें
सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ऐसे जजों पर कार्रवाई करें जो जातिवादी सोच के आधार पर फैसले देते हैं।
राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग को सक्रिय और प्रभावी बनाया जाए।
राज्य सरकारें जातिगत उत्पीड़न के मामलों को प्राथमिकता पर लें और सख्त कार्यवाही करें।
ऐसे उदाहरण बने कि अपराधी डरें और समाज में बराबरी की भावना स्थापित हो।
जातिगत अत्याचार की शर्मनाक घटनाएं – राजेन्द्र पाल गौतम ने देशभर से सामने आई भीषण घटनाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि यह केवलआंकड़े नहीं हैं, ये समाज की क्रूर सच्चाई हैं:
मध्य प्रदेश (छिंदवाड़ा) में आदिवासी युवक को पेशाब पिलाया गया।
ओडिशा में एक पिता को गंजा कर घास खिलाई गई, जब वह अपनी बेटी की शादी के लिए गाय ला रहा था।
अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश) में मंदिर के पास खड़े होने पर दलित युवक को पीटा गया।
अंबेडकर जयंती पर दलित युवकों को करंट देकर मारा गया।
उन्होंने कहा कि 26% ऐसे मामले अकेले उत्तर प्रदेश से सामने आए हैं, जो स्वयं को सबसे बेहतर कानून व्यवस्था वाला राज्य बताता है।
जब न्यायपालिका ही भेदभाव करे –
राजेन्द्र पाल गौतम ने वर्ष 2021 में छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के उस फैसले को याद दिलाया जिसमें कहा गया था कि उच्च जाति का व्यक्तिअनुसूचित जाति की महिला के साथ बलात्कार नहीं कर सकता।
उन्होंने कहा कि यह मानसिकता राजस्थान के भूरी देवी मामले (1992) में भी सामने आई थी।
ओडिशा में अपमानजनक सज़ा
उन्होंने हाल ही में ओडिशा में उमेश्वर नायक और सीजी माली के साथ हुए व्यवहार की निंदा की, जिन्हें अवैध खनन के विरोध में प्रदर्शन करने परगिरफ़्तार कर लिया गया और अदालत ने उन्हें थाने में सफाई का कार्य करने की सज़ा सुनाई।
राजेन्द्र पाल गौतम ने इस पर तीखा सवाल उठाया — क्या दलितों के लिए सिर्फ झाड़ू और सफाई का काम ही बचा है?
सरकारी आंकड़े भी बोल रहे हैं सच्चाई – उन्होंने संसद में प्रस्तुत कुछ आंकड़ों को उजागर किया
उत्तर प्रदेश में 11,444 मामले → 13,144
राजस्थान में 4,238 → 7,224
मध्य प्रदेश में 5,892 → 7,214
हरियाणा में 762 → 1,628
उड़ीसा में 1,669 → 2,327
महाराष्ट्र में 1,689 → 2,503
उत्तराखंड में 96 → 130
इनमें से अधिकांश राज्य भारतीय जनता पार्टी के शासन में हैं, जिससे राजेन्द्र पाल गौतम ने भाजपा पर सीधे सवाल खड़े किए। बदलाव ज़रूरी है.
राजेन्द्र पाल गौतम ने कहा कि अब यह केवल सरकारों, आयोगों और अदालतों की ज़िम्मेदारी नहीं, बल्कि पूरे देश की नैतिक ज़िम्मेदारी है कि जातिगतअत्याचार के खिलाफ आवाज़ उठाई जाए। उन्होंने कहा कि अगर न्याय व्यवस्था जातिवादी मानसिकता से ग्रस्त रहेगी, तो संविधान केवल किताबोंतक सीमित रह जाएगा।