NEWS अब तक

दिल्ली विधानसभा अध्यक्ष विजेंद्र गुप्ता ने बारबाडोस की राजधानी ब्रिजटाउन में आयोजित 68वें कॉमनवेल्थ पार्लियामेंट्री कॉन्फ्रेंस (CPC) में भागलिया। इस सम्मेलन में उन्होंने लोकतंत्र के समर्थन में हमारी संस्थाओं को सुदृढ़ बनाना विषय पर आयोजित कार्यशाला में अपने विचार साझा किए।गुप्ता ने कहा कि लोकतंत्र केवल शासन की व्यवस्था नहीं है, बल्कि यह संवाद, उत्तरदायित्व और विविधता के सम्मान की जीवंत संस्कृति है। उनकामानना है कि लोकतंत्र की असली ताकत कानूनों या चुनावों में नहीं, बल्कि जवाबदेही और नागरिकों के विवेक में निहित है।

लोकतंत्र की असली शक्ति
विजेंद्र गुप्ता ने कार्यशाला में कहा कि लोकतंत्र तब मजबूत होता है जब प्रत्येक व्यक्ति की आवाज़ सुनी जाए, चाहे वह किसी भी लिंग, क्षेत्र यासामाजिक वर्ग से हो। उन्होंने जोर देकर कहा कि लोकतंत्र केवल चुनावों तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि यह समानता, उत्तरदायित्व और नागरिकसहभागिता की संस्कृति के रूप में विकसित होना चाहिए। उन्होंने कहा, किसी लोकतंत्र की मजबूती इस बात से नहीं आँकी जाती कि वहाँ कितनी बारचुनाव होते हैं, बल्कि इस बात से कि उसकी संस्थाएँ कितनी निष्पक्ष हैं, प्रतिनिधित्व कितना समावेशी है और शासक वर्ग का विवेक कितना जागृत है।

भारत का लोकतांत्रिक अनुभव
गुप्ता ने भारत के लोकतंत्र और उसके संवैधानिक मूल्यों का उदाहरण दिया। उन्होंने 1993 में हुए 73वें और 74वें संविधान संशोधनों का उल्लेखकिया, जिनसे पंचायती राज और नगरीय निकायों को संवैधानिक दर्जा मिला। इसके साथ ही स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए एक-तिहाईआरक्षण सुनिश्चित किया गया।


इस सुधार ने लगभग 14 लाख महिलाओं को सक्रिय रूप से जनजीवन में भाग लेने का अवसर दिया और जमीनी लोकतंत्र की संरचना को नई दिशादी। इसके अलावा, संसद द्वारा 128वें संविधान संशोधन के तहत लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक-तिहाई आरक्षणसुनिश्चित किया गया, जिसमें अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए आरक्षित सीटें भी शामिल हैं। इसे श्री गुप्ता ने लैंगिक न्याय और सहभागीलोकतंत्र की दिशा में एक नैतिक और संवैधानिक मील का पत्थर बताया।

चुनावी और संस्थागत सुधार
गुप्ता ने पिछले एक दशक में भारत में हुए कई चुनावी और संस्थागत सुधारों का उल्लेख किया। इनमें प्रवासी भारतीयों को मतदान का अधिकार, ऑनलाइन मतदाता पंजीकरण, इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों में ‘NOTA’ विकल्प और वीवीपैट प्रणाली शामिल हैं। उन्होंने कहा कि सर्वोच्च न्यायालयद्वारा दोषसिद्ध विधायकों की तत्काल अयोग्यता सुनिश्चित करना और इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को असंवैधानिक घोषित करना लोकतंत्र की पारदर्शिताऔर जनता के विश्वास को मजबूत करने का उदाहरण है।

विधान सभाएँ और संघीय लोकतंत्र
गुप्ता ने कहा कि राज्य विधानसभाएँ भारत की संघीय लोकतांत्रिक व्यवस्था की रीढ़ हैं। वे केवल कानून बनाने वाली संस्थाएँ नहीं हैं, बल्कि जनजीवनमें संविधान के आदर्शों को लागू करने की प्रयोगशालाएँ भी हैं। उन्होंने बताया कि विधानसभाएँ शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि और लोक व्यवस्था जैसेमहत्वपूर्ण विषयों पर कानून बनाती हैं, बजट की निगरानी करती हैं और कार्यपालिका को उत्तरदायी बनाती हैं। उन्होंने कहा, यदि संसद राष्ट्र की इच्छाका प्रतीक है, तो विधानसभाएँ जनता की आवाज़ का प्रतिबिंब हैं।

लोकतंत्र में पारदर्शिता और नैतिक नेतृत्व
विधानसभा अध्यक्ष ने जोर दिया कि लोकतंत्र, पारदर्शिता और विकेंद्रीकरण संस्थागत विश्वास के तीन स्थायी स्तंभ हैं। उन्होंने कहा कि लोकतांत्रिकसंस्थाओं को केवल प्रक्रियागत सुधारों से मजबूत नहीं किया जा सकता, बल्कि जनजीवन में नैतिक पुनर्जागरण की भी आवश्यकता है।
गुप्ता ने कहा कि सच्चा लोकतंत्र केवल कानूनों से नहीं टिकता, बल्कि यह नैतिक नेतृत्व, उत्तरदायी नागरिकता और सेवा-भाव से प्रेरित जनप्रतिनिधियोंके विवेक पर आधारित होता है।

भारत का संदेश और वैश्विक मंच पर प्रतिबद्धता
गुप्ता ने कहा कि भारत की भागीदारी 68वें कॉमनवेल्थ पार्लियामेंट्री कॉन्फ्रेंस में संवैधानिक शासन, संस्थागत सुदृढ़ता और सामूहिक प्रगति में विश्वासका प्रतीक है। उनका कहना था कि लोकतंत्र की असली शक्ति अधिकार में नहीं, बल्कि जवाबदेही और अंतःकरण में निहित है। भारत का यह संदेशयह दर्शाता है कि लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए केवल चुनाव और कानून ही पर्याप्त नहीं हैं, बल्कि नैतिक नेतृत्व, न्याय और समावेशीप्रतिनिधित्व भी जरूरी है।


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *