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दिल्ली विधानसभा के मानसून सत्र में आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता और बुराड़ी से विधायक संजीव झा ने एक गंभीर मुद्दा उठाया। उन्होंने आरोपलगाया कि सरकार के नए आदेश के कारण जिलाधिकारी (डीएम) और उपजिलाधिकारी (एसडीएम) जैसे अधिकारी अब विधायकों के फोन नहीं उठारहे हैं।

मुख्यमंत्री के आदेश बने अफसरों के लिए बहाना
संजीव झा ने बताया कि दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने हाल ही में एक आदेश जारी किया है, जिसके अनुसार अब विधायक या मंत्री अगर किसीडीएम या एसडीएम को बैठक में बुलाना चाहें, तो पहले उन्हें मुख्य सचिव से अनुमति लेनी होगी। इस आदेश का हवाला देते हुए कई अफसर अबजनप्रतिनिधियों के फोन नहीं उठा रहे हैं। संजीव झा ने कहा, मैं खुद कई बार डीएम को कॉल कर चुका हूं, लेकिन उन्होंने मेरा फोन नहीं उठाया। अबउन्हें सीएम के आदेश का बहाना मिल गया है।

सदन की अवमानना है यह आदेश
संजीव झा ने इस आदेश को न केवल विधायकों का अपमान बताया, बल्कि इसे विधानसभा की गरिमा के खिलाफ भी कहा। उन्होंने इसे सदन कीअवमानना करार दिया और विधानसभा अध्यक्ष से अपील की कि वे सरकार को यह आदेश तुरंत वापस लेने का निर्देश दें। उन्होंने कहा, यह आदेशसिर्फ विपक्ष नहीं, बल्कि हर विधायक और मंत्री के अधिकारों का हनन करता है। अगर कार्यपालिका (ब्यूरोक्रेसी) ऐसे ही चुने हुए जनप्रतिनिधियों कोनजरअंदाज करती रही, तो लोकतंत्र की पूरी व्यवस्था ही कमजोर हो जाएगी।

ब्यूरोक्रेसी जनता के प्रतिनिधियों को रोकने का रास्ता खोज रही है
संजीव झा ने अफसरशाही पर सवाल उठाते हुए कहा कि ब्यूरोक्रेसी हमेशा ऐसे मौके की तलाश में रहती है, जिससे वह जनप्रतिनिधियों के कामों कोटाल सके या रोक सके। उन्होंने कहा, जनता ने हमें चुनकर सदन में भेजा है। अगर हम अफसरों से बात तक नहीं कर सकते, तो फिर जनता की सेवाकैसे करेंगे?

विधानसभा अध्यक्ष से संजीव झा की अपील
विधायक संजीव झा ने कहा कि विधानसभा अध्यक्ष ही इस स्थिति में हस्तक्षेप कर सकते हैं। उन्होंने उम्मीद जताई कि अध्यक्ष उनके द्वारा दिए गएविशेषाधिकार हनन के नोटिस को स्वीकार करेंगे और सीएम के आदेश को रद्द करवाएंगे। उन्होंने कहा, यह सिर्फ मेरी लड़ाई नहीं, पूरे सदन औरलोकतंत्र की लड़ाई है। हर विधायक की बात सुनी जानी चाहिए, चाहे वह सत्ता पक्ष में हो या विपक्ष में।

लोकतंत्र में जनता सर्वोच्च है
अपने भाषण के अंत में संजीव झा ने कहा कि जनता ही लोकतंत्र की असली मालिक है और उसी जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों का अपमान करनासीधे संविधान का अपमान है। उन्होंने सवाल उठाया कि, क्या अफसरशाही चुने हुए नेताओं से ऊपर है? अगर सीएम का यह आदेश जारी रहा, तोअफसर आगे भी विधायकों की बातों को नजरअंदाज करते रहेंगे। संजीव झा ने दिल्ली सरकार के इस आदेश को लोकतंत्र और विधायकों की भूमिकाके खिलाफ बताया। उन्होंने जोर देकर कहा कि अगर चुने हुए जनप्रतिनिधियों को ही अफसर नजरअंदाज करेंगे, तो जनता की समस्याएं कौन सुनेगा? उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष से मांग की कि वह इस आदेश को तुरंत वापस लेने के निर्देश दें ताकि विधायकों और अफसरों के बीच संवाद बना रहे औरजनसेवा की प्रक्रिया सुचारु रूप से चल सके।


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