
विपक्षी गठबंधन के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बी.सुदर्शन रेड्डी के मुद्दे पर भारतीय न्यायपालिका दो धड़ों में बंटती दिखाई दे रही है. दरअसलसुदर्शन रेड्डी को लेकर अमित शाह ने जो बयान दिया था उस पर कुछ रिटायर्ड जजों ने आपत्ति जताई थी. अब उन जजों के जवाब में 56 अन्य पूर्वजजों ने खुला पत्र लिखा है. जिसमें कहा गया है कि राजनीतिक बयानों से न्यायपालिका की गरिमा को नुकसान हो रहा है. 23वें लॉ कमीशन केसदस्य हितेश जैन ने भी सुदर्शन रेड्डी का समर्थन करने वाले पूर्व जजों के प्रति नाराजगी जाहिर की है और सोशल मीडिया पर एक लंबा चौड़ा पोस्टलिखा है. इस पोस्ट में हितेश जैन ने लिखा कि ‘हाल ही में जस्टिस अभय ओका के कुछ इंटरव्यू पढ़े और मुझे बिल्कुल भी हैरानी नहीं हुई कि उन्होंने भीजस्टिस सुदर्शन रेड्डी के समर्थन में लिखे पत्र पर हस्ताक्षर किए थे.
लाखों लोगों के भाग्य को होता है फैसला
हितेश जैन ने लिखा कि ‘ऐसा ट्रेंड चल रहा है कि ज्यादा से ज्यादा रिटायर्ड जज खुलकर राजनीतिक कार्यकर्ताओं की तरह व्यवहार कर रहे हैं और येबात मुझे परेशान करती है. हितेश जैन ने कई पूर्व जजों के नाम लेकर दावा किया कि न्यायिक आजादी के सैद्धांतिक रुख के बजाय, ये जज पक्षपातीहो रहे हैं. जैन ने लिखा न्यायिक आजादी, प्रेस कॉन्फ्रेंस करने, इंटरव्यू देने या पक्षपाती पत्रों के जरिए सुरक्षित नहीं रहती, बल्कि इसके लिए जिलाअदालतों और मजिस्ट्रेट अदालतों की हर दिन की कार्यवाही देखी जाती हैं, जहां लाखों लोगों के भाग्य का फैसला होता है.
संरक्षक होने का करती है दावा
हितेश जैन ने कुछ रिटायर्ड जजों पर निशाना साधते हुए कहा कि ‘ये वही न्यायाधीश हैं, जो अब लोकतंत्र के संरक्षक होने का दावा करते हैं. लेकिनअसल मुद्दों जैसे निचली अदालतों की स्थिति, नियुक्तियों में देरी और आम नागरिकों को न्याय मिलने की स्थिति पर चुप रहे. लॉ कमीशन के सदस्यजैन ने आरोप लगाया कि जो रिटायर्ड जज बार-बार न्यायिक पदोन्नति और सर्वोच्च न्यायालय में लंबित कुछ मामलों पर सवाल उठाते हैं वे निचलीअदालतों में लंबित मुकदमों, सुनवाई में कैसे तेजी लाई जाए और न्याय को कैसे सुलभ बनाया जाए, इस पर कभी बात नहीं करते.