
ऑपरेशन सिंदूर के बाद सभी सशस्त्र बल अपनी क्षमताओं और सामरिक रणनीति को बढ़ाने के काम में जुट गए हैं. इस ऑपरेशन के बाद हवाई खतरोंकी नई चुनौतियां भी सामने आई हैं क्योंकि आतंकवाद के खिलाफ इस युद्ध में हवाई क्षेत्र के जरिये ही हथियारों व मिसाइलों का इस्तेमाल करते हुएपाकिस्तान को सबक सिखाया गया. इसी के मद्देनजर अब सेना की पश्चिमी कमान और बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स (बीएसएफ) ने मिलकर पश्चिमी थिएटर(सियाचिन ग्लेशियर से गुजरात तक भारत-पाक सीमा) में हवाई खतरों की चुनौतियों से निपटने का फैसला लिया है.
सीमा प्रबंधन को किया जाए पुख्ता
इस संदर्भ में पिछले दिनों पश्चिमी कमान के सेना कमांडर और बीएसएफ के एडीजी के बीच विस्तृत चर्चा भी हो चुकी है.सेना और बीएसएफ के वरिष्ठनेतृत्व ने ऑपरेशन सिंदूर के परिणामों और सैन्य कार्रवाई की समीक्षा करते हुए बढ़ते हवाई खतरों के मद्देनजर स्तरित हवाई क्षेत्र रक्षा तंत्र को मजबूतकरने के लिए विशेष रूप से छोटे मानव रहित हवाई प्रणालियों से निगरानी और काउंटर-ड्रोन क्षमताओं को बढ़ाने पर जोर दिया. पश्चिमी थिएटर मेंसीमा प्रबंधन को पुख्ता किया जाए, इसके लिए सेना और बीएसएफ अपने ऑपरेशन तालमेल को बढ़ाते हुए संयुक्त रूप से अपने युद्ध कौशल कोनिखारेगी. सीमाओं पर दोनों बलों के जवानों व अफसरों को क्या चुनौतियां पेश आ रही हैं और इनसे कैसे निपटा जाए, इस पर भी काम होगा. दोनों केबीच रियल-टाइम इंफॉर्मेशन साझा करना, समन्वय बनाए रखना और इमरजेंसी के दौरान तुरंत निर्णय लेने की क्षमताओं को और विकसित कियाजाएगा.
हर वक्त है निपटने के लिए तैयार
ऑपरेशन सिंदूर के बाद यह भी स्पष्ट हो गया है कि सेना और बीएसएफ को सीमाओं की आकस्मिकताओं से निपटने के लिए हर वक्त तैयार रहनाहोगा. इसी के चलते दोनों अब समन्वित रक्षात्मक लड़ाई लड़ने के लिए ड्रोन, सी-यूएवी, निगरानी और संचार जैसे तालमेल के नए क्षेत्रों में आगे बढ़ेंगे. इसके लिए दोनों बलों के बीच प्रशिक्षण के दायरे, उपकरण साझाकरण और उपकरणों की प्रोफाइल में सामंजस्य को बढ़ाना होगा. सेना औरबीएसएफ ने फैसला लिया है कि दोनों बल अब सीमाओं पर संयुक्त सुरक्षा बल संस्कृति को विकसित करते हुए निरंतर सहयोग और संयुक्तता कीभावना को बढ़ाएंगे. ताकि दोनों बलों के सहयोग से आधुनिक और उभरते हवाई खतरों का प्रभावी ढंग से मुकाबला किया जा सके.