आम आदमी पार्टी के दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष सौरभ भारद्वाज ने एक अहम प्रेस कॉन्फ्रेंस में केंद्र की भाजपा सरकार पर तीखा हमला बोला। उन्होंने आरोपलगाया कि सरकार ने प्राइवेट स्कूलों के हित में एक ऐसा कानून पास किया है जो न केवल पारदर्शिता के खिलाफ है, बल्कि सीधे तौर पर पेरेंट्स कीजेब पर चोट है। सौरभ भारद्वाज ने कहा कि जबसे दिल्ली में भाजपा की सरकार बनी है, तब से प्राइवेट स्कूलों में मनमाने ढंग से फीस बढ़ाई जा रही है।यूनिफॉर्म, किताबें और एक्स्ट्रा क्लासेज़ के नाम पर स्कूल अभिभावकों से भारी-भरकम फीस वसूल रहे हैं, और पेरेंट्स के पास कोई विकल्प नहीं है।उन्होंने बताया कि पहले ऐसा नियम था कि कोई भी स्कूल यदि फीस बढ़ाना चाहता है, तो उसे पहले सरकारी मंज़ूरी लेनी होती थी। लेकिन इस बारबिना किसी अप्रूवल के स्कूलों ने मनमाने ढंग से फीस बढ़ा दी, और सरकार ने चुपचाप इसे जायज़ बनाने के लिए एक नया कानून ऑर्डिनेंस के ज़रिएलागू कर दिया। भारद्वाज ने कहा, “सरकार ने न तो जनता से राय ली, न ही विपक्ष को चर्चा का मौका दिया। विधानसभा में लाने की बजाय इस कानूनको चोरी-छुपे ऑर्डिनेंस से पास किया गया।” उन्होंने सवाल उठाया कि अगर सरकार सच में अभिभावकों के हित में यह कानून ला रही थी, तो इसेसार्वजनिक क्यों नहीं किया गया?
उन्होंने आरोप लगाया कि यह कानून पूरी तरह से प्राइवेट स्कूल मालिकों को लाभ पहुंचाने के लिए तैयार किया गया है। स्कूल स्तर पर बनाई गई फीसरेगुलेशन कमेटी में ज़्यादातर सदस्य स्कूल संचालकों के ही होंगे, और उनके निर्णयों को चुनौती देना मुश्किल होगा। “लॉटरी से चुने गए अभिभावकों केनाम भी मनमर्जी से तय हो सकते हैं, जिससे निष्पक्षता पर सवाल खड़े होते हैं,” उन्होंने कहा। सौरभ भारद्वाज ने कानून में जुर्माने से जुड़ी व्यवस्था पर भीसवाल उठाया। उन्होंने कहा कि सरकार दिखावे के लिए कह रही है कि यदि कोई स्कूल अधिक फीस वसूलेगा तो उस पर ₹50,000 का जुर्मानालगाया जाएगा, लेकिन असल में ऐसा कभी होगा ही नहीं, क्योंकि पूरी प्रक्रिया ही सरकार ने इस तरह बनाई है कि कोई शिकायत दर्ज ही न हो पाए।आख़िर में उन्होंने सरकार पर सीधे आरोप लगाया कि, “यह सरकार अब पूरी तरह से प्राइवेट स्कूलों की लॉबी के आगे झुक चुकी है। यह ऑर्डिनेंसअभिभावकों की नहीं, बल्कि प्राइवेट स्कूल मालिकों की सुविधा के लिए बनाया गया है। सरकार चर्चा से भाग रही है, और उसकी नीयत में खोट है।” सौरभ भारद्वाज ने सरकार से मांग की कि वह इस मुद्दे पर खुले मंच पर बहस करे और अभिभावकों को राहत देने के लिए पारदर्शी और जनहितकारीनीति बनाए।