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बिहार में इस साल की अंतिम तिमाही में होने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर सरगर्मियां तेज हैं. जहां सत्तासीन एनडीए में शामिल भारतीय जनतापार्टी (भाजपा), जनता दल यूनाइटेड (जदयू), लोकजनशक्ति पार्टी (लोजपा) समेत सभी दल एकसाथ आने को लेकर प्रतिबद्धता जता चुके हैं, वहींविपक्षी महागठबंधन में भी गठबंधन को लेकर बातचीत जारी है. कुछ समय पहले नई दिल्ली में राजद और कांग्रेस की आखिरी बैठक में लोकसभा मेंनेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने बिहार में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव से मुलाकात की। बताया जाता है कि इसबैठक में दोनों पार्टियों के बीच सीट साझा करने पर चर्चाएं हुईं, हालांकि कुछ भी ठोस नहीं कहा गया. तेजस्वी ने बैठक के बाद कहा कि बिहार में इसबार एनडीए की सरकार नहीं बनने जा रही. वहीं, सांसद मनोज झा ने कहा था कि विधानसभा चुनाव के लिए महागठबंध पूरी तरह तैयार है. कुछ ऐसीही बैठक 5 मई को भी हुई है. पटना में हुई इस बैठक की अध्यक्षता तेजस्वी यादव ने की इस बैठक की खास बात यह रही कि तेजस्वी यादव नेमहागठबंधन का नाम लेने की जगह पूरे इंडिया गठबंधन को लोगों के बीच जाकर नीतीश सरकार की नाकामी बताने को कहा. इतना ही नहीं उन्होंने17 महीने तक चली जदयू-राजद सरकार की उपलब्धियों को अलग से गिनाने की बात कही. वहीं, कांग्रेस ने भी इंडिया गठबंधन दलों के साथ एकताबनाते हुए चुनाव की तैयारी का आह्वान किया.

मजबूत पार्टी के तौर पर उभरी कांग्रेस
आजादी के बाद से ही कांग्रेस सिर्फ देश ही नहीं बल्कि राज्यों में भी मजबूत पार्टी के तौर पर उभरी. बिहार में तो कांग्रेस के बेरोकटोक शासन काआलम यह था कि 1947 से लेकर 1967 तक कांग्रेस लगातार शासन में रही. इस दौरान पार्टी के श्रीकृष्ण सिन्हा लगातार 13 साल तक मुख्यमंत्रीपद पर रहे. हालांकि, 1961 में उनके निधन के बाद अगले छह साल में बिहार ने कांग्रेस के तीन और मुख्यमंत्री देखे. 1967 से 1968 का छोटा दौरछोड़ दें तो कांग्रेस 1977 तक बिहार पर राज करती रही 1977 ही वह साल था, जब जनता पार्टी का उदय हुआ और पहली बार कांग्रेस को कर्पूरीठाकुर के नेतृत्व से चुनौती मिली. हालांकि, इस दौर में भी अपनी तीखी राजनीति के जरिए कांग्रेस वापसी में कामयाब रही और मार्च 1990 तकशासन में सफल रही. जगन्नाथ मिश्र बिहार में कांग्रेस के आखिरी मुख्यमंत्री साबित हुए. उनके बाद न तो बिहार में कभी कांग्रेस अपना मुख्यमंत्री बनासकीऔर न ही कभी कांग्रेस अन्य दलों के मुकाबले ज्यादा सीटें हासिल कर पाई. बिहार में कांग्रेस के 1990 के चुनाव में हारने की सबसे बड़ी वजह1989 में भागलपुर में हुए दंगों को बताया जाता है.

दंगे नें हुई सैकड़ो लोगों की मौत
दरअसल, इस दंगे में सैकड़ों लोगों की मौत हुई थी बिहार में तब कांग्रेस की सरकार थी अपनी राजनीति को धार देने में लगे लालू प्रसाद यादव ने इनदंगों का इस्तेमाल कांग्रेस को घेरने के लिए शुरू किया. 1990 के विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज कर लालू यादव की जनता दल सत्ता में आई 1988 में अलग-अलग दलों के विलय से बना जनता दल 1990 में 324 सीटों में से 122 जीतने में सफल रहा. वहीं, कांग्रेस 71 सीटों पर सिमट गई। यहांतक कि भाजपा को इस चुनाव में 39 सीटें मिलीं. लालू ने मुख्यमंत्री बनने के बाद बिहार में मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू कर दिया औरअपनी राजनीतिक जमीन मजबूत कर ली. मुस्लिम और यादव उनके वोटबैंक का अहम हिस्सा बन गए लालू के इस कदम की काट कांग्रेस फिर नहीं ढूंढपाई और राज्य में चुनाव दर चुनाव लगातार यह वोट बैंक उससे दूर ही रहा. 1990 के बाद से हुए चुनावों की ही बात कर लें तो कांग्रेस के प्रदर्शन मेंलगातार गिरावट हुई और उसे सरकार बनाने का मौका तक नहीं मिला.

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