
30 साल तक समाजवादी पार्टी की अग्रिम पंक्ति का हिस्सा रहे और खांटी नेता की भूमिका अदा करने वाले ऊंचाहार विधायक डॉ. मनोज कुमार पांडेयको सपा से निष्कासित कर दिया गया है. सपा हाईकमान ने दो दिन पहले तीन विधायकों को पार्टी से बाहर किया था. उसमें ऊंचाहार विधायक कानाम भी शामिल था. आरोप लगे हैं कि राज्यसभा के चुनाव में क्रास वोटिंग की गई थी इस पूरे मामले में विधायक डॉ. मनोज कुमार पांडेय ने कहा किउन्होंने जो भी किया अपनी अंतरात्मा की आवाज पर किया. सपा विचारधारा से भटक गई है और उसमें उन्हें हर दिन घुटन होती थी. आवश्यकताआविष्कार की जननी होती है। इसमें कोई दोराय नहीं है कि 30 वर्ष का लंबा सफर सपा के साथ रहा है.
राजनीति से नहीं कोई समझौता
हमने सपा को ताकत देने का काम किया दर्द भी सहन किए एक विचारधारा लेकर हम आगे बढ़े, इसमें सबका का सम्मान, सबका आदर रहा. उसी परहम आगे बढ़ते चले गए. जहां अन्याय और अत्याचार दिखा वहां खुलकर विरोध किया. कभी समझौतावादी राजनीति नहीं की. हर समाज के व्यक्तिको आगे लाने के लिए काम किया। तमाम बार जेल भी जाना पड़ा. इसमें कोई दोराय नहीं है कि सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने उन्हें स्नेह दियानेताजी का स्नेह बना रहा. उनके साथ काम भी किया लेकिन राजनीति विचारधारा पर होती है जब कोई राजनीतिक दल विचारधारा से अलग हो जाएतो दिक्कत होती है. उन्होंने अपरोक्ष रूप से सपा के पूर्व महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य पर निशाना साधा कहते हुए कहा कि यह कैसे हो सकता है किएक व्यक्ति जो चंद दिनों के लिए सपा में आया और उसने श्रीराम के लिए अशोभनीय टिप्पणी करनी शुरू कर दी यही नहीं माता सीता, दुर्गा मां औरगंगा मां पर भी टिप्पणी की.
मनोज पांडेय के आना होगा घर
वह व्यक्ति जिसे जनता ने धूलधूसरित किया है. यदि किसी को पीडीए देखना है तो उसे मनोज पांडेय के घर आना होगा. मैंने कभी भी जाति काभेदभाव नहीं किया. उन्होंने कहा कि सपा में धर्म के नाम पर आस्था से खिलवाड़ किया जा रहा था. कोई श्रीराम को गाली देने का काम कर रहा था. हमारी आत्मा को ठेस पहुंचाया जा रहा था। मेरी अंतरात्मा जगी हुई थी, मैंने विरोध किया। हाउस में भी इसी बात को कहा। मैंने सपा के राष्ट्रीय नेतृत्वको भी समझाने का प्रयास किया तो परिणाम क्या हुआ कि उस व्यक्ति को पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव बना दिया गया और उसके बाद लखनऊ मेंरामचरित मानस की प्रतियां को जलवाने और रौंदने का काम किया गया। उसी व्यक्ति को विधान परिषद का सदस्य बना दिया गया। इसके बाद मुझेलगा कि शायद भावनाओं का ख्याल नहीं किया जा रहा है।