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नेपाल की पूर्व राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने शनिवार को घोषणा की कि उन्होंने करीब एक दशक बाद सक्रिय राजनीति में वापसी कर ली है. उन्होंनेनेपाल की सत्ताधारी पार्टी नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी- एकीकृत मार्क्सवादी लेनिनवादी (सीपीएन-यूएमएल) की सदस्यता दोबारा ली है. उन्होंने यहघोषणा काठमांडू में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान की जो उनके दिवंगत पति और सीपीएन-यूएमएल के पूर्व महासचिव मदन भंडारी की 74वींजयंती पर मदन भंडारी फाउंडेशन की ओर से आयोजित किया गया था.
विद्या भंडारी ने कहा मैंने पार्टी की राजनीतिक यात्रा को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से सीपीएन-यूएमएल की सदस्यता फिर से ली है. भंडारी ने आगे कहाअब मैं एक बार फिर इस परिवार की सदस्य के रूप में सीपीएन-यूएमएल से जुड़ गई हूं और मुझे इस पर गर्व है. इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री केपी शर्माओली भी मौजूद थे जो सीपीएन-यूएमएल के मौजूदा अध्यक्ष भी हैं.

तमाम तरह की लगाई जा रही थी अटकलें
पूर्व राष्ट्रपति की सक्रिय राजनीति में वापसी ऐसे समय में हुई है जब उनके पार्टी में संभावित भविष्य को लेकर तमाम तरह की अटकलें लगाई जा रहीथीं. पिछले कुछ महीनों में विद्या भंडारी देशभर में पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं से मिलती रहीं. जिससे यह अटकलें और तेज हो गई थीं कि उन्हें पार्टीमें कोई बड़ी भूमिका निभाने को मिल सकती है. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भंडारी की वापसी सीपीएन-यूएमएल में ओली के एकाधिकारके लिए चुनौती बन सकती है. काठमांडू पोस्ट ने पार्टी सूत्रों के हवाले से लिखा कि भंडारी सीपीएन-यूएमएल के अगले महाधिवेशन में ओली कोचुनौती दे सकती हैं. ओली 2014 से पार्टी का नेतृत्व कर रहे हैं और वह तीसरे कार्यकाल की तैयारी में हैं. कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ओली ने पार्टी कीएकता की बात दोहराई और बिना किसी का नाम लिए चेताया यूएमएल को तोड़ने का सपना मत देखो. ओली ने पार्टी सदस्यों से 2027-28 में होनेवाले अगले आम चुनावों पर फोकस करने को कहा विद्या भंडारी की राजनीतिक वापसी की अटकलें इसलिए भी तेज हो गईं थीं क्योंकि उन्होंने हाल हीमें 24 मई से 10 दिन की चीन यात्रा की थी.

अधिकारियों से की मुलाकात
जहां उन्होंने कई वरिष्ठ अधिकारियों से मुलाकात की. नेपाल में इस यात्रा को उनकी राजनीतिक पकड़ मजबूत करने की कोशिश के रूप में देखा गया. भंडारी की राजनीति में दोबारा प्रवेश ने नेपाल की राजनीतिक गलियारों में नई बहस को जन्म दे दिया है. वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक ध्रुवहरि अधिकारी ने कहा कि किसी पूर्व राष्ट्रपति का दलगत राजनीति में लौटना आम बात नहीं है भले ही कानूनी रूप से कोई रोक न हो. उन्होंने कहा कियह नैतिक सवाल जरूर खड़ा कर सकता है भले ही यह निजी फैसला हो. विद्या देवी भंडारी 2015 से 2023 तक नेपाल की दो बार राष्ट्रपति रहीं. 2015 में राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने पार्टी की सदस्यता छोड़ दी थी. क्योंकि यह पद मुख्य रूप से प्रतीकात्मक और गैर-राजनीतिक होता है. राष्ट्रपतिबनने से पहले वह सीपीएन-यूएमएल की वरिष्ठ नेता थीं और पार्टी की उपाध्यक्ष रह चुकी थीं वह 2009 में नेपाल की रक्षा मंत्री भी रह चुकी हैं जबमाधव कुमार नेपाल प्रधानमंत्री थे.

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