
आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने प्रेस वार्ता में भारतीय रेलवे में कार्यरत कुलियों की दुर्दशा पर गंभीर चिंता जताई। उन्होंने बतायाकि उन्होंने पिछले कई सत्रों में लगातार राष्ट्रीय कूली मोर्चा की मांगों को संसद में उठाया है, लेकिन सरकार की ओर से अब तक कोई संतोषजनक उत्तरया समाधान सामने नहीं आया है।
सदियों से बोझ उठाते, आज खुद बोझ बन गए
संजय सिंह ने कहा कि भारत में रेलवे कुलियों की सेवा कोई नई बात नहीं है। यह एक ऐसा वर्ग है जो सैंकड़ों वर्षों से रेलवे स्टेशनों पर यात्रियों काबोझ ढोता आया है, लेकिन आज उनके दर्द को सुनने वाला कोई नहीं है। वे समाज के सबसे मेहनतकश और ईमानदार लोगों में शामिल हैं, लेकिनआज उनका काम निजी हाथों में सौंप दिया गया है। उन्हें न तो सरकारी नौकरी मिली, और न ही अब कूली का काम करने की अनुमति।
लालू यादव के समय बनी थी नीति
संजय सिंह ने कहा कि जब लालू प्रसाद यादव रेल मंत्री थे, तब उन्होंने कूलियों के हित में एक नीति बनाई थी, जिसके तहत कूलियों या उनके परिवारके किसी सदस्य को रेलवे में नौकरी देने का प्रावधान किया गया था। उस समय लगभग 22 हजार लोगों को नौकरी मिली थी। लेकिन आज भी करीब20 हजार ऐसे कूली हैं जिन्हें कोई रोजगार नहीं मिला है।
निजीकरण से और बढ़ी पीड़ा
उन्होंने यह भी बताया कि अब कूलियों के काम को एप आधारित निजी कंपनियों को सौंप दिया गया है, जिससे उनके रोजगार पर संकट गहरा गया है।न निजी कंपनियों ने उन्हें शामिल किया, न सरकार ने कोई सहायता दी। इस कारण से कूली समाज के सामने दो वक्त की रोटी जुटाना भी मुश्किल होगया है।
आंदोलन में साथ देने का वादा
संजय सिंह ने यह स्पष्ट किया कि वे इस बार भी संसद के आगामी सत्र में कुलियों की समस्याओं को प्रमुखता से उठाएंगे। उन्होंने यह भी कहा कि यदिकूली समाज की ओर से कोई आंदोलन किया जाता है, तो वे स्वयं उसमें शामिल होकर उनकी आवाज़ को और मजबूती देंगे।
इस प्रेस वार्ता के माध्यम से संजय सिंह ने सरकार से स्पष्ट रूप से यह पूछा है कि आख़िर कूलियों के भविष्य को लेकर कोई ठोस नीति कब बनाईजाएगी। रेलवे का निजीकरण और कुलियों की उपेक्षा एक सामाजिक अन्याय है जिसे अब और अधिक समय तक नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।संजय सिंह की यह पहल एक भूले-बिसरे वर्ग को न्याय दिलाने की ईमानदार कोशिश है, जिसे हर नागरिक और नीति निर्माता को गंभीरता से लेनाचाहिए।