
संसद का चल रहा मानसून सत्र हंगामों, वॉकआउट और बार-बार स्थगन का गवाह रहा है. विपक्ष के विरोध और लगातार व्यवधान के बीच लोकसभा ने12 और राज्यसभा ने 14 अहम बिल पास किए. यह सत्र 21 जुलाई से शुरू हुआ और बार-बार विपक्षी मांगों के कारण बाधित होता रहा. शुरुआत मेंविपक्ष ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर चर्चा की मांग को लेकर जोरदार हंगामा किया. इसके बाद बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन) को लेकर बहस की मांग ने सत्र को और जकड़ दिया. नतीजा यह रहा कि कई दिनों तक सदन की कार्यवाही बाधित रही और चर्चा के बजायवॉकआउट और नारेबाजी होती रही.
विधेयक हुए राज्यसभा से पारित
लोकसभा में जिन 12 विधेयकों को मंजूरी मिली, उनमें गोवा विधानसभा में अनुसूचित जनजातियों के प्रतिनिधित्व से जुड़ा बिल, मर्चेंट शिपिंग बिल, मणिपुर जीएसटी संशोधन विधेयक, मणिपुर विनियोग विधेयक, राष्ट्रीय खेल प्रशासन विधेयक और राष्ट्रीय एंटी-डोपिंग संशोधन विधेयक शामिल हैं. इसके अलावा आयकर विधेयक, टैक्सेशन लॉज (संशोधन) बिल, भारतीय बंदरगाह विधेयक, खनन और खनिज (विकास और विनियमन) संशोधनविधेयक, आईआईएम संशोधन विधेयक और ऑनलाइन गेमिंग नियमन से जुड़ा विधेयक भी पास किया गया. राज्यसभा में 14 विधेयक पारित यालौटाए गए. इनमें बिल्स ऑफ लेडिंग बिल, कैरिज ऑफ गुड्स बाय सी बिल, कोस्टल शिपिंग बिल, मणिपुर से जुड़े दो विधेयक, मर्चेंट शिपिंग बिलऔर गोवा विधानसभा से जुड़ा प्रतिनिधित्व संशोधन विधेयक शामिल हैं. साथ ही राष्ट्रीय खेल प्रशासन विधेयक, राष्ट्रीय एंटी-डोपिंग संशोधनविधेयक, आयकर विधेयक, टैक्सेशन लॉज संशोधन बिल, भारतीय बंदरगाह विधेयक, खनन एवं खनिज संशोधन विधेयक और आईआईएम संशोधनविधेयक भी राज्यसभा से पारित हुए.
हंगामा कर चर्चा का गंवाया मौका
सरकारी सूत्रों ने कहा कि विपक्ष ने लगातार हंगामा कर चर्चा का मौका गंवाया. इस कारण कई महत्वपूर्ण बिल बिना विपक्ष की सक्रिय भागीदारी केपारित हो गए. राज्यसभा में केवल बिल्स ऑफ लेडिंग बिल ही पहले दिन बिना बाधा पारित हुआ, बाकी विधेयक शोरगुल, आंशिक बहस या विपक्षके वॉकआउट के बीच पारित हुए. सरकार का कहना है कि विपक्ष के असहयोगी रवैये ने लोकतांत्रिक विमर्श को नुकसान पहुंचाया है. संसद के मानसूनसत्र में हंगामे और विपक्षी विरोध के बावजूद लोकसभा ने 12 और राज्यसभा ने 14 विधेयक पास किए. ‘ऑपरेशन सिंदूर’ और बिहार के विशेषपुनरीक्षण को लेकर हुए विवाद ने सत्र की कार्यवाही को बार-बार बाधित किया. सरकार ने विपक्ष पर असहयोग का आरोप लगाया और कहा कि कईअहम बिल बिना विपक्ष की सक्रिय भागीदारी के पारित हो गए, जिससे लोकतांत्रिक बहस प्रभावित हुई.