
बिहार में अचानक शुरू हुई प्रक्रिया
बिहार में जून के अंत में मतदाता सूची सुधार की प्रक्रिया अचानक शुरू की गई। चुनाव तक सिर्फ चार महीने बचे थे। 2003 में ऐसी प्रक्रिया चुनाव सेएक-दो साल पहले की जाती थी। तब महाराष्ट्र और अरुणाचल प्रदेश में इसे स्थगित कर दिया गया था। सवाल उठता है कि अब ऐसा क्यों नहीं कियागया और आयोग ने इसका जवाब नहीं दिया।
आधार कार्ड को क्यों रखा बाहर
चुनाव आयोग ने दस्तावेजों की लंबी सूची बनाई, लेकिन इसमें आधार कार्ड शामिल नहीं था। आजकल हर सरकारी काम में आधार जरूरी है। ऐसे मेंमतदाता सूची सुधार में आधार को बाहर रखना समझ से बाहर है।
लाखों मतदाता सूची से हटाए गए
बिहार में लगभग 65 लाख मतदाता सूची से हटाए गए। इसके पीछे चुनाव आयोग ने कोई कारण नहीं बताया। सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बाद भीकुछ अधिकारियों ने जब आधार कार्ड स्वीकार किया, तो उन्हें कारण बताओ नोटिस भेज दिया गया।
पवन खेड़ा का मामला
2 सितंबर को दिल्ली के डिस्ट्रिक्ट इलेक्शन ऑफिस ने पवन खेड़ा और उनकी पत्नी को नोटिस भेजा। इसमें उनकी निजी जानकारी सार्वजनिक कर दीगई और भाषा दोषी ठहराने जैसी थी 2017 में पवन खेड़ा ने अपने नाम को नए पते पर स्थानांतरित कराया था। चुनाव आयोग ने उस समय उनका नामनई सूची में डाल दिया था। अब आठ साल बाद यह आरोप लगाया गया कि उनका नाम दो जगह दर्ज है।
आयोग की निष्पक्षता पर सवाल
पवन खेड़ा लगातार सवाल पूछते रहे कि इतने बड़े पैमाने पर मतदाता क्यों सूची से हटाए गए और आधार कार्ड क्यों शामिल नहीं किया गया। ऐसालगता है कि आयोग ने पुराने मामले को उठाकर उन्हें बदनाम करने की कोशिश की। संवैधानिक संस्था का ऐसा रवैया लोकतंत्र के लिए सही नहीं है।
मतदाता का विश्वास ही लोकतंत्र की नींव
लोकतंत्र तभी मजबूत रहेगा जब मतदाता का विश्वास मजबूत हो। मतदाता सूची में जल्दबाजी और त्रुटि इसे कमजोर कर देती है। चुनाव आयोग काकाम लोगों को जोड़ना है, हटाना नहीं। यदि आयोग समय पर जांच करता, तो आठ साल बाद नोटिस भेजने जैसी स्थिति पैदा नहीं होती।